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एलोरा की विकसित बौद्ध स्थापत्यकला में हर साल

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एलोरा की विकसित बौद्ध स्थापत्यकला में हर साल फाल्गुन महिने में बुद्ध मुर्ति पर सुर्य किरणों गिरती है जो बौद्ध नववर्ष उत्सव का प्रतीक है|एलोरा की संरचना अत्यंत विकसित बौद्ध स्थापत्यकला का उत्कृष्ट उदाहरण है| एलोरा बौद्ध गुफा की रचना इस तरह से बनाई गई है कि, हर साल फाल्गुन महिने के आरंभ में सुर्य का प्रकाश बुद्ध मुर्ति के चेहरे पर पडता है| तथागत बुद्ध को फल्गु नदी (निरंजना नदी) पर बोधिवृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त हुआ था| बुद्धत्व को बौद्ध धर्म में “फल” कहते हैं| तथागत बुद्ध को निरंजना नदी के तट पर बुद्धत्व का फल गुण प्राप्त हुआ था, इसलिए बुद्धत्व का फलगुण देनेवाली निरंजना नदी बौद्ध परंपरा में फलगुन नदी बनी| फलगुन नदी से बुद्ध को “फलगुन देव या फल्गुदेव” कहते हैं| बौद्ध शक संवत सक्क बुद्ध से संबंधित बौद्ध कालगणना संवत था इसलिए उसका पहला महिना बुद्ध फल्गुदेव से संबंधित “फलगुन महिना (फाल्गुन महिना)” कहा जाने लगा| बौद्ध शक संवत का आरंभ फाल्गुन महिने से आरंभ होता था, इसलिए सुर्य का वर्ष आरंभ भी बुद्ध से छुकर होता है ऐसा समझा जाने लगा और उसे शिल्प रुप में दर्शाने के लिए सम्राट अशोक ने एलोरा की बौद्ध गुफा में सुर्य की किरणें बुद्ध के चेहरे पर हर साल गिरती रहेंगी ऐसा एलोरा गुफा का निर्माण किया गया|आजकल बड़ी संख्या में लोग यह चकित करनेवाला दृश्य प्रत्यक्ष देखने के लिए फाल्गुन महिने के आरंभ में एलोरा जातें हैं जहाँ हर साल तीन दिन सुर्य की किरणें बुद्ध मुर्ति के चेहरे पर गिरती है| लेकिन उसके पिछे का इतिहास किसी को पता नहीं है| इतना ही नहीं बल्कि संपुर्ण एलोरा गुफा और वहाँ का कैलाश मंदिर भी प्राचीन बौद्ध स्तुप है जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था| कैलाश मंदिर में भी अनेक बौद्ध राज छिपे हुए हैं जिन्हें हम स्टेप बाय स्टेप सामने लानेवाले है|एलोरा की गुफा में बुद्ध मुर्ति पर गिरनेवाला सुरज का प्रकाश बुद्ध के प्रकाशमान बुद्धत्व का प्रतीक है और हर साल फाल्गुन महिने के आरंभ में वह गिरता है जो बौद्ध वर्ष आरंभ का प्रतीक है|-डॉ. प्रताप चाटसे

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