*समस्या ये है कि व्यक्ति ओर संगठन भले ही कोई भी हो लेकिन उसकी सोच धर्मनिरपेक्ष नहीं होने के कारण उसके मन की सोच का व्यवहार दिख ही जाता है, जिस सोच को वो छुपाना चाहता है लेकिन बताना नहीं चाहते है,**हम सब भारतवासी है, हमको जो बनना है उसको विचारों के साथ व्यवहार में लाये … तब हम जनता से सहमती का धोखा कम खायेगे …………..**लेकिन धोखा तो हम ही जनता से करते है और दोष जनता पर देते है ………**कभी कभी मेरे मन में ख्याल आता है, कि कई सों वर्ष पूर्व भी धोखा पढ़े लिये व्यक्ति ही देते थे ओर आजा भी पढ़े लिए व्यक्ति ही धोखा देते है ..**अनपढ़ जब भी धोखा देने की कोशिस करता है हमेशा पकड़ा जाता है …..**पूर्व में भी और वर्तमान में भी किसी एक समुदाय पर आरोप लगाकर कुछ व्यक्ति ,अपने हित की रोटियां सेखते ही नहीं बल्कि हजारों लाखो का खाना छीन कर बर्बाद कर देते है ……**दर्द कैसे बाया करे हम अपना मुझे बोलने की आदत नहीं और उनको पढ़ने की आदत नहीं …..**वो सुनना चाहते है ओर हम बोल नहीं पाते है,**अंधविश्वास और पाखण्डवाद जब किसी व्यक्ति या समूह की रोजी रोटी के साथ उसकी तरक्की बन जाए तो उसके लिए पाखण्डवाद और अंधविश्वास को स्वयं छोड़ना तो दूर वो अंधविश्वास और पाखण्डवाद को फैलने से भी नहीं रोकता बल्कि जनता को को अंधविश्वास और पाखण्डवाद में भरपूर विश्वास दिलाता है* *सामाजिक चिंतक* *एडवोकेट रीता भुइयार* *नजीबाबाद जिला बिजनौर उप्र भारत*